Delhi High ने बुधवार को मौखिक रूप से यह टिप्पणी की कि विवाह पंजीकरण को लेकर 2006 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अभी तक पालन न होना “दुर्भाग्यपूर्ण और चौंकाने वाला” है। यह मुद्दा न केवल कानूनी प्रक्रिया की विफलता को उजागर करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि सरकार इस विषय पर गंभीर नहीं है। विवाह पंजीकरण न होने से न केवल सरकारी योजनाओं का लाभ प्रभावित होता है, बल्कि यह धोखाधड़ी और बहुविवाह जैसी समस्याओं को भी बढ़ावा देता है।

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मामले का सारांश (Delhi High)
मुख्य न्यायाधीश डी. के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ दिल्ली निवासी आकाश गोयल की जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता ने गृह मंत्रालय को विवाह पंजीकरण के लिए एक केंद्रीकृत डेटाबेस बनाने का निर्देश देने की मांग की, जिससे राज्य-स्तरीय डेटाबेस की खामियों को दूर किया जा सके। इसके अलावा, ऑनलाइन विवाह पंजीकरण की सुविधा शुरू करने की भी मांग की गई।
सुप्रीम कोर्ट का 2006 का आदेश
फरवरी 2006 में, सुप्रीम कोर्ट ने सभी धर्मों के विवाह का अनिवार्य रूप से पंजीकरण सुनिश्चित करने का आदेश दिया था और राज्य सरकारों को तीन सप्ताह के भीतर इसके लिए नियम बनाने को कहा था। हालांकि, इतने वर्षों बाद भी यह निर्देश पूरी तरह से लागू नहीं किया गया। विवाह पंजीकरण से संबंधित स्पष्ट नीति की कमी के कारण कई राज्यों में यह प्रक्रिया जटिल बनी हुई है।
याचिकाकर्ता की दलीलें (Delhi High)
याचिकाकर्ता ने एक RTI रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि 2014 से जनवरी 2024 तक केवल 2,19,305 विवाह पंजीकृत हुए हैं, जबकि दिल्ली में हर साल लगभग 5 लाख विवाह होते हैं। यह दर्शाता है कि 5% से भी कम विवाह पंजीकृत किए गए हैं।
इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि विवाह पंजीकरण प्रक्रिया में अनावश्यक देरी और जटिलताएँ लोगों को इसे अपनाने से रोक रही हैं। सरकारी कार्यालयों में आवश्यक दस्तावेज़ों की माँग, लंबी प्रक्रियाएँ और डिजिटल व्यवस्था की कमी इस समस्या को और गंभीर बना रही हैं।
Delhi High की सख्त टिप्पणी
Delhi High ने सरकार से जवाब मांगते हुए कहा:
- “यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण और चौंकाने वाला है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया गया।”
- राज्य सरकार और केंद्र सरकार को तीन महीने के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया गया।
- अगली सुनवाई 9 जुलाई को होगी।
वर्तमान पंजीकरण प्रणाली की खामियां
याचिका में यह भी कहा गया कि मौजूदा व्यवस्था पर्याप्त नहीं है और लोगों को अनावश्यक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
- केंद्रीकृत डेटाबेस का अभाव: अलग-अलग राज्यों में विवाह पंजीकरण प्रणाली होने के कारण कोई भी व्यक्ति एक राज्य में पहले से शादीशुदा होने के बावजूद दूसरे राज्य में विवाह पंजीकृत करा सकता है। यह धोखाधड़ी और बहुविवाह की संभावना को बढ़ाता है।
- ऑनलाइन सुविधा का न होना: यदि ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन और वर्चुअल उपस्थिति की अनुमति दी जाए तो लोगों को अधिक सहूलियत मिलेगी। विदेशों में रहने वाले भारतीय नागरिकों के लिए भी यह एक बड़ा फायदा होगा।
- कार्यकारी नियमों की सीमाएं: दिल्ली सरकार ने नियम बनाए हैं, लेकिन वे केवल कार्यकारी स्तर पर लागू हैं। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत विधायी प्रावधान आवश्यक हैं।
केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश
- गृह मंत्रालय को विवाह पंजीकरण के लिए केंद्रीकृत डेटाबेस तैयार करने का निर्देश देने की मांग की गई।
- राज्य और केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पूरी तरह से अनुपालन हो।
- न्यायालय ने कहा कि विवाह पंजीकरण कानून का निर्माण समय की मांग है और इस विषय पर केवल अदालत में बहस करना समाधान नहीं है।
पंजाब सरकार से संबंधित मामला
Delhi High ने पंजाब प्राइवेट मैनेज्ड एफिलिएटेड और पंजाब गवर्नमेंट एडेड कॉलेज पेंशनरी बेनिफिट्स स्कीम, 1996 के क्रियान्वयन में देरी के मामले का भी संज्ञान लिया। सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 18 के आदेश में पंजाब सरकार को समय बर्बाद करने और कई वर्षों तक इस योजना को लागू न करने के लिए फटकार लगाई।
याचिका में रखी गई अन्य प्रमुख माँगें
- केंद्रीय गृह मंत्रालय को निर्देशित किया जाए कि वह विवाह पंजीकरण के लिए एक केंद्रीकृत डेटाबेस तैयार करे।
- यह डेटाबेस नागरिकों के लिए उपलब्ध हो ताकि विवाह से पहले परिवार की सही जानकारी प्राप्त की जा सके।
- दिल्ली अनिवार्य विवाह पंजीकरण आदेश, 2014 को संशोधित किया जाए और ऑनलाइन पंजीकरण तथा वर्चुअल उपस्थिति की अनुमति दी जाए।
- सरकारी योजनाओं का लाभ केवल उन दंपतियों को दिया जाए जिनका विवाह पंजीकृत है।
- विवाह पंजीकरण की प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाया जाए।
अदालत की अंतिम टिप्पणी
Delhi High ने तीन महीने का समय देते हुए सरकार को चेतावनी दी कि आदेश का पालन न करना अस्वीकार्य होगा।
“सरकार को लोगों की आवश्यकताओं के अनुसार विवाह पंजीकरण के नियम बनाने होंगे। यह अदालत में लाने का विषय नहीं होना चाहिए।”

निष्कर्ष (Delhi High)
Delhi High की यह सख्त टिप्पणी दर्शाती है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद विवाह पंजीकरण को लेकर कानून की कमी और प्रशासनिक उदासीनता एक गंभीर समस्या बनी हुई है। इस मामले में केंद्रीकृत डेटाबेस, ऑनलाइन पंजीकरण और सख्त नियमों की जरूरत है ताकि विवाह पंजीकरण की प्रक्रिया को पारदर्शी और सुलभ बनाया जा सके। सरकार को जल्द से जल्द इस दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।